इंद्रियों पर नियंत्रण रखना ही उत्तम संयम : पंडित रोहित शास्त्री
कोरबा :- “मन, वचन, शरीर तीनों का त्याग करना और पांचों इंद्रियों पर नियंत्रण करना उत्तम संयम है। संयम के साथ लगा उत्तम शब्द सम्यक दर्शन की सत्ता का सूचक है।” धर्म के 10 लक्षणों में छठवां धर्म उत्तम संयम के संबंध में पंडित रोहित शास्त्री ने दिगंबर जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व के छठवें दिन कहा कि संयम शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। सम और यम।
सम अर्थात सम्यक और यम अर्थात मार देना। सम्यक रूप में विकारी पदार्थों को अपने से अलग कर देना ही संयम है। यह दो प्रकार का होता है। प्राणी संयम एवं इंद्रिय संयम। पांचो इंद्रियों को व मन को वश में करना ही इंद्रिय संयम है। जिससे षटकाय जीवों की रक्षा होती है। इंद्रिय संयम से हमें व्रत लेना चाहिए। क्योंकि बिना व्रत के जीवन, धूप में खड़े इंतजार करने वाले व्यक्ति जैसा होगा। जिस प्रकार नदी में किनारा ना हो और गाड़ी में ब्रेक ना हो तो दोनों ही बेकार हैं।
जैन मिलन समिति के उपाध्यक्ष दिनेश जैन ने बताया की वाणी संयम, खाने पीने, बोलने, उठने बैठने, सोने आदि में भी रखना चाहिए। गुरु उपासना, देव पूजा, त्याग, तप, संयम, और इंद्रिय संयम यही श्रोताओं के 6 काम है। भगवान कुछ नहीं देते हैं तो भी सब कुछ दे देते हैं। सच्चे गुरु वह हैं, जिनके पास विषयों की कोई आकांक्षा नहीं है। रात्रि भोजन का त्याग, पानी छानकर पीना, देव दर्शन आदि समस्त जैनियों की विशेषता होती है। मनुष्य जन्म की सार्थकता संयम धारण करने से ही होती है।
पर्यूषण पर्व पर समस्त जैन समाज के लोगों ने उत्तम संयम के बारे में धर्मज्ञान, तत्वज्ञान प्राप्त किया। मंदिर में सुबह 7:00 बजे भगवान श्री जी का अभिषेक, शांति धारा पूजन किया गया। शाम 7:00 बजे आरती, प्रवचन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में पुरुष व महिलाएं उपस्थित हुई।